कभी होते थे ऐसे मौसम
मिट्टी की सुगंध हवा में भरी
छत पर बूंदे टपकने की आवाज़
और झिंगुर की गीत कानो में गूंजते
यह है बरसात सुहानी |
ताज़ी हवा भी गर्मी ले आती
कड़क धूप आंखों में गड़ती
छाँव के खोज में पसीना बहना
इस गर्मी से मुझे न मिलना |
ठंडी हवा काटों – सी चुभती
तीन कंबल के नीचे छिपना
अब आइसक्रीम भी गरम है खाना
सर्दी से बाहर मत जाना |
आखिरकार यह वायु हुई सुखद
पेड़ों ने पहन ली फूलों की पोशाक
न चाहिए पंखा न कम्बल की आवश्यकता
अब बसंती भोर खिला ||
By, Pragya Prachi Bharat, Grade 10, Ekya BTM