सावन का पहला साया
दोपहर को मैं बैठी हाथ में किताब लिए
फिर किसी ने मुझको बुलाया,
जोर से आवाज दिया
आशंका हुई मुझे कही
सोचा कि शायद वही तो नहीं?
फिर मेरी नजर कैलेंडर पर पडी
और मेरी आंखें माथे पर चढ़ी
अब मुझे पता चला कि किसने बुलाया
अरे वाह! यह तो है सावन का पहला साया
कुर्सी से उठ के मैं दौड़ की गई खिड़की पर
और आसमान को देखकर सोचा
आज लगता है देव पथ है अपनी ही मजे में
जहां पर पहले दिवाकर सूर्य का राज था
वहां पर अब केश फैलाए काले घने बादलों का
राज करने की हुई थी लालसा
फिर आरंभ हुआ सूर्यदेव व बादलों के बीच का महासंग्राम
गरजते हुए दोनों ने लिया एक दूसरे का नाम
शोर सुन के कांप उठा सारा गगन और मेरा मन
परंतु अंततः लंबी चांदी समान विजय पताका बरसाते हुए जीत गए घन
तब मैंने हलके से, हंस के सर हिलाया
हां, सोचा, यही तो है सावन का पहला साया !